Friday, August 7, 2009

मेरे इश्क की दवा करे कोई?


दोस्तों ग़ालिब की ग़ज़ल को एक नया रूप देने की कोशिश की है उम्मीद है की आपको पसंद आएगी !

मेरे इश्क की दवा करे कोई ,
होता है गम, गर बुरा करे कोई!

तीर दिल से चला करे कोई,
क्यों किसी का गिला करे कोई!

रोकती हू मैं आहे तडपती हुई,
काश उसको खुदा करे कोई!

बज्म में रंग तेरी नीयत का,
रोक लो गर गलत चले कोई!

रहनुमा बन चूका है किस्मत का,
दिल में ऐसे तो घर करे कोई !

मेरे हालात अब मेरे बस में नहीं,
क्यों किसी की आरजू करे कोई !

हर तरफ आंसुओ का दरिया है,
उसको थमता समुन्दर करे कोई !

वो तो बुत था और रहेगा भी सदा,
देवता मानकर उसे पूजा करे कोई !


द्वारा

--------अनु शर्मा