Friday, August 7, 2009
मेरे इश्क की दवा करे कोई?
दोस्तों ग़ालिब की ग़ज़ल को एक नया रूप देने की कोशिश की है उम्मीद है की आपको पसंद आएगी !
मेरे इश्क की दवा करे कोई ,
होता है गम, गर बुरा करे कोई!
तीर दिल से चला करे कोई,
क्यों किसी का गिला करे कोई!
रोकती हू मैं आहे तडपती हुई,
काश उसको खुदा करे कोई!
बज्म में रंग तेरी नीयत का,
रोक लो गर गलत चले कोई!
रहनुमा बन चूका है किस्मत का,
दिल में ऐसे तो घर करे कोई !
मेरे हालात अब मेरे बस में नहीं,
क्यों किसी की आरजू करे कोई !
हर तरफ आंसुओ का दरिया है,
उसको थमता समुन्दर करे कोई !
वो तो बुत था और रहेगा भी सदा,
देवता मानकर उसे पूजा करे कोई !
द्वारा
--------अनु शर्मा
Sunday, July 12, 2009
मन की अनुभूतियों को कोई रंग नहीं देता ......
मन की अनुभूतियों को कोई रंग नहीं देता ,
साथ चलते है सब पर कोई संग नहीं देता!
हाथ मेहँदी भरे अश्रुं पी लेते .......पर
मेरा अपना मुझे जीने का ढंग नहीं देता!
तेरी-मेरी कहानी का क्या रंग हो?
साथ चलते तो हो पर क्या मेरे संग हो?
ऐसे प्रश्नों को मेरे वो ज़ंग नहीं देता ,
मेरा अपना मुझे जीने का ढंग नहीं देता!
मेरी नाकामियों में भी उनका रंग है
मैं कही भी रहूँ मगर वो संग है
वो बेदर्दी दिले तंग मरने भी नहीं देता ,
मेरा अपना मुझे जीने का ढंग नहीं देता!
dwara
------anu sharma
Thursday, June 25, 2009
नमी हसीन आँखों की चुरा गया कोई.........
नमी हसीन आँखों की चुरा गया कोई,
बातो ही बातो में कई ख्वाब दिखा गया कोई !
सोचा था दिल ही दिल में उमंगें जवान हो ,
रूहे जज्बात जानकर मुस्कुरा गया कोई!
ना गम का ठिकाना और ना रुसवाइयों का डर,
मुझको इस कदर जीना सिखा गया कोई!
लबों से अब टपकता है इश्के रज़ा का नूर ,
कुछ ही पलो में मुझको-मुझसे चुरा गया कोई !
हालात अब मेरे-मेरे बस में नहीं है ,
या खुद वफ़ा का शीशा दिखा गया कोई !
कांटे भी पल रहें हैं फूलों के दामन में,
ये सोचकर हौले से गुनगुना गया कोई !
इसे मोहब्बत नहीं तो भला और क्या कहें,
मेरी पलकों से मेरी नींदे भी चुरा गया कोई!
द्वारा
------अनु शर्मा
बातो ही बातो में कई ख्वाब दिखा गया कोई !
सोचा था दिल ही दिल में उमंगें जवान हो ,
रूहे जज्बात जानकर मुस्कुरा गया कोई!
ना गम का ठिकाना और ना रुसवाइयों का डर,
मुझको इस कदर जीना सिखा गया कोई!
लबों से अब टपकता है इश्के रज़ा का नूर ,
कुछ ही पलो में मुझको-मुझसे चुरा गया कोई !
हालात अब मेरे-मेरे बस में नहीं है ,
या खुद वफ़ा का शीशा दिखा गया कोई !
कांटे भी पल रहें हैं फूलों के दामन में,
ये सोचकर हौले से गुनगुना गया कोई !
इसे मोहब्बत नहीं तो भला और क्या कहें,
मेरी पलकों से मेरी नींदे भी चुरा गया कोई!
द्वारा
------अनु शर्मा
Friday, April 3, 2009
Thursday, January 1, 2009
Tuesday, December 30, 2008
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