Monday, September 22, 2008

[१४] वसुंधरा घबरा गई ,प्रकृति भी मुरझा गई !



वसुंधरा घबरा गयी ,

प्रकृति भी मुरझा गयी !

जन-जन की इस पीड़ा मे,

खुशियाँ अपनी कहाँ गयी?




नर्घातक भूमिचल आया ,

सृष्टी को निस्तेज बनाया !

आओ सब मिल काम करें ,

वसुधा नव निर्माण करें !!




सुनामी भी निगल ,

गयी मानव की पीडाओं को !

ना आँखों मे आंसू रहें ,

मासूमों की लाशे बहे !




जंगल निर्जन बन गए ,

हरे - भरे वृक्ष कहाँ गए ?

इंसा को बचाएं कैसे ?

फूलो को खिलाएं कैसे?




अब हम प्रण उठाएंगे ,

धरती स्वर्ग बनायेंगे !

रोटी हुई इस मानवता के,

ह्रदय की पीड़ा मिटायेंगे !





द्वारा

------------------अनु राज

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