
वसुंधरा घबरा गयी ,
प्रकृति भी मुरझा गयी !
जन-जन की इस पीड़ा मे,
खुशियाँ अपनी कहाँ गयी?
नर्घातक भूमिचल आया ,
सृष्टी को निस्तेज बनाया !
आओ सब मिल काम करें ,
वसुधा नव निर्माण करें !!
सुनामी भी निगल ,
गयी मानव की पीडाओं को !
ना आँखों मे आंसू रहें ,
मासूमों की लाशे बहे !
जंगल निर्जन बन गए ,
हरे - भरे वृक्ष कहाँ गए ?
इंसा को बचाएं कैसे ?
फूलो को खिलाएं कैसे?
अब हम प्रण उठाएंगे ,
धरती स्वर्ग बनायेंगे !
रोटी हुई इस मानवता के,
ह्रदय की पीड़ा मिटायेंगे !
द्वारा
------------------अनु राज
No comments:
Post a Comment