
कभी लगता है ये तो सिर्फ बेकारो का काम हैं!
कभी लगता हैं ये आँखों की नमी हैं,
कभी लगता है दुनिया इसी जज्बे से थमी हैं !
कभी लगता हैं ये बहाना है दिल दुखाने का,
कभी लगता हैं बहाना हैं जिस्मो को मिलाने का !
कभी लगता हैं ये बहती रवानी हैं,
कभी लगता है नासूर जवानी है१
कभी लगता हैं दिलबर की खामोशी है,
कभी लगता है ये सिर्फ मदहोशी है!
कभी लगता है ये सिर्फ मदहोशी है!
कभी लगता है जन्नत सा नज़ारा है,
कभी लगता है इसने हर किसी को मारा है !
कभी लगता है धोखे की परछाई हैं,
कभी लगता है सूरज की लाली छाई है!
कभी लगता है महबूब का सीना है,
कभी लगता है जहर को ही पीना है!
इस प्रेम,प्रीत,प्यार को "अनु" ना समझ पाएँगी,
अभी जलते हुए अंगारों पर चलकर वो खुद को जलाएगी !
द्वारा
----------------अनु राज
4 comments:
इस प्रेम,प्रीत,प्यार को "अनु" ना समझ पाएँगी,
अभी जलते हुए अंगारों पर चलकर वो खुद को जलाएगी !
इस प्रेम,प्रीत,प्यार को "अनु" ना समझ पाएँगी,
अभी जलते हुए अंगारों पर चलकर वो खुद को जलाएगी !
very good Anu ji !!
aapka bhaw paksh bahut sashakt hai.god bless u.
bahut achha likha hai pyar ki uljhan ko samjhne ka achha prayas
Anil
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