Saturday, September 13, 2008

[६]गज गामिनी वामा को सोंदर्य सुधा क्यो कहते हैं ?



इस गज गामिनी वामा को सोंदर्य सुधा क्यों कहते हैं?

पुरूष के चक्षु हरपल इसकी प्रतिमा पे टिके क्यों रहते हैं?

इस कांता की हर एक लचक ,

दामिनी बनकर कड़कती हैं ।

जब-जब ये दिखाए एक झलक ।

क्यों ह्रदय में ज्वाला भड़कती हैं ?

कानन भी अनुपम सोंदर्य का ,

बखान किया करता हैं ।

बनकर भृत्य ये शून्य भी ,

इसकी सेवा करता हैं।

इस अलंकृता को तो देखो ,

मदिरा का दूजा स्वरुप हैं।

इसे पाने की अभिलाषा हैं,

ऐसा प्रेममयी ये रूप हैं।

ये रतिपति की कल्पना ,

देवो को भी बहकाती हैं ।

ये ऐसी चंचल मरीचि हैं ,

संघर्ष यहाँ करवाती हैं ।

जब प्रेम मई मग्न ये होती हैं,

यूँ भाव-विभोर सी होती हैं।

अपने साजन के प्रेमवश ,

काँटों पर भी ये सोती हैं।

ये केकई और सीता दोनों के ,

अंतर्मन में समायी हैं ।

ये ब्रह्मा की वो रचना हैं ,

हर रूप मई जो मुस्काई हैं।

ये माँ भी हैं ,पत्नी भी हैं ,

बेटी का अनोखा रूप भी हैं।

ये तो ऐसा फूल हैं बगिया का ,

और इन्द्रधनुष का स्वरुप भी हैं ।

सम्मान इसे दे-दे ओ पुरूष ,

क्यों हरपाल मान घटाता हैं?

तेरे ही प्रेम की छायाँ ये ,

क्यों हरपल इसे रुलाता हैं?

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