Tuesday, December 30, 2008
पत्थर हो जहाँ दिल ,तो फिर तकरार क्या करना!
Sunday, December 28, 2008
Bemisl si sadayen
Sunday, December 21, 2008
कुछ ख्यालात जो बदल जाते

अपने हालात कुछ संभल जाते !
मेरे आगोश की पनाहों में ,
उनके ज़ज्बात कुछ तो ढल जाते !
प्यार के नाम से वो डरते है ,
लेकिन कहते है तुमपे मरते है !
मेरे आंसू उन्हें बुलाते है ,
काश इस दर्द को समझ पाते ?
इस घनी धुप में जो छाया है ,
वो ही है रूह ,वो ही साया है !
मेरी दुनिया बस उनके दम से है ,
काश इन आँखों को वो पढ़ पाते ?
जानते है हम उनके काबिल नहीं ,
इक भटकती लहर का साहिल नहीं ,
जो दिखाए है सब्ज़ बाग़ हमे ,
काश उस मोड़ तक ही जाते ?
द्वारा
------------- अनु राज
Wednesday, October 1, 2008
[१८]क्या कहे हाले दिल बया करना नहीं आता!

Wednesday, September 24, 2008
[16]हाथो में हाथ लेकर दो कदम ही चले थे !

मेरी आँखों में नमी और कुछ हंसीन सपने पले थे!
यू बीच रास्ते में ठुकरा गए सनम,
जल गए जज़्बात जो कभी इस दिल में पले थे !
उस पत्थर को नज़र आती नहीं पलकों की ये नमिया,
लगता नहीं कभी हम दो कदम साथ भी चले थे?
कोई कसर न छोड़ी इस कदर टूट के यू चाहा ,
अफ़सोस है उस घड़ी पर की जब वो हमसे मिले थे?
द्वारा
------------अनु राज
Tuesday, September 23, 2008

कभी लगता है ये तो सिर्फ बेकारो का काम हैं!
कभी लगता हैं ये आँखों की नमी हैं,
कभी लगता है दुनिया इसी जज्बे से थमी हैं !
कभी लगता हैं ये बहाना है दिल दुखाने का,
कभी लगता हैं बहाना हैं जिस्मो को मिलाने का !
कभी लगता हैं ये बहती रवानी हैं,
कभी लगता है नासूर जवानी है१
कभी लगता है ये सिर्फ मदहोशी है!
कभी लगता है जन्नत सा नज़ारा है,
कभी लगता है इसने हर किसी को मारा है !
कभी लगता है धोखे की परछाई हैं,
कभी लगता है सूरज की लाली छाई है!
कभी लगता है महबूब का सीना है,
कभी लगता है जहर को ही पीना है!
इस प्रेम,प्रीत,प्यार को "अनु" ना समझ पाएँगी,
अभी जलते हुए अंगारों पर चलकर वो खुद को जलाएगी !
द्वारा
----------------अनु राज

नाम दिल में छुपा था जो शब्द बन के छा गए !
वो कहते हैं ये मेरे प्यार में दीवानी हैं लोगों,
इतना सुनते ही मेरी आँख में आंसू से आ गए!
तन्हाईया मेरी मुझे रुसवा न कर सकी जब ,
वो महफिल में सरे आम यूँ करीब आ गए!
आँखे बरस रही थी उनके इन्तिज़ार में ,
अनछुए से पल में वो बन के नसीब आ गए!
आदत सी हो गयी हैं उनके नाम की "अनु",
वो समझे अदा इसे और हंसी में उड़ा गए!
हर एक गली , कून्चो में दीवानों की भीड़ हैं,
सरताज बनके सबके दिलो पे वो छा गए!
क्यों खलिश सी इस ज़मी को आसमा की है?
"अनु" के रूबरू जब मसीहा ही आ गए!
द्वारा
---------अनु राज
Monday, September 22, 2008
[१४] वसुंधरा घबरा गई ,प्रकृति भी मुरझा गई !

वसुंधरा घबरा गयी ,
प्रकृति भी मुरझा गयी !
जन-जन की इस पीड़ा मे,
खुशियाँ अपनी कहाँ गयी?
नर्घातक भूमिचल आया ,
सृष्टी को निस्तेज बनाया !
आओ सब मिल काम करें ,
वसुधा नव निर्माण करें !!
सुनामी भी निगल ,
गयी मानव की पीडाओं को !
ना आँखों मे आंसू रहें ,
मासूमों की लाशे बहे !
जंगल निर्जन बन गए ,
हरे - भरे वृक्ष कहाँ गए ?
इंसा को बचाएं कैसे ?
फूलो को खिलाएं कैसे?
अब हम प्रण उठाएंगे ,
धरती स्वर्ग बनायेंगे !
रोटी हुई इस मानवता के,
ह्रदय की पीड़ा मिटायेंगे !
द्वारा
------------------अनु राज
Sunday, September 21, 2008
[१५] जो एक कली मुरझाई थी,छूने से उनके खिल गई !
Friday, September 19, 2008
[१४] इस प्रेम पंथ की कल्पना अति जटिल और व्यर्थ क्यों?
Thursday, September 18, 2008
[१३] भ्रमित-भ्रमित से मन की मेरे ये कैसी अभिलाषा है ?
रूठे साजन फिर आन मिलेंगे , मन में ये ही बस आशा है!
पल-पल,छीन-छीन,लम्हा-लम्हा जीवन की ये डोर बनी,
मैं तुम्हारी और तुम मेरे ,फिर काहे दर्प की डोर तनी?
एक दूजे पर जीवन अपना ,हम क्यों वार नहीं देते ?
तुम पर इतना मैं मरती हूँ,क्यों थोडा प्यार नहीं देते?
स्वप्निल,स्नेहिल और हर्षित ये सारे रूप तुम्हारे हैं ,
मधुर्मयी स्वरूप दिखा दो,हम सर्वस्व ही तुम पर वारे हैं !
जीवन का अमृत बनकर इन होंठो पर बहना है तुम्हे ,
प्रत्यक्ष प्रेम की परिभाषा बन ह्रदय में रहना हैं तुम्हे!
द्वारा
-------------अनु राज
Tuesday, September 16, 2008
[१२] शब्दों के मायाजाल में, अंतर्मन खो गया !
अंतर्मन खो गया!
जो दिल कभी विराना था,
बाग़-बाग़ हो गया!
धरती हैं गर हम?
तो आकाश आप हो!
इस अनछुए से मन के ,
एहसास आप हो!
नयन अगर खोले ?
तो दूर हो आप !
बंद अगर करे तो?
पास आप हो !
तेरी अनछुई छुअन ने ,
बड़े जख्म कर दिए !
दिल मे घर बनाकर,
वो कही और चल दिए!
आपकी जुदाई हम सह ना पाएंगे ,
आपसे दूर रहकर,हम तो मर जायेंगे!
द्वारा-
----अनु राज
[१२] किस कारण इतना प्यार दिया.........?
पत्थर सा जो यू मार दिया !
तुम कौन दिशा से आये पथिक ?
किस कारण इतना प्यार दिया ?
चंचल-चंचल सा समावेश,
मन गंगा जल सा वार दिया !
तुम कौन दिशा से आये पथिक ?
किस कारण इतना प्यार दिया ?
संताप भरे इस जीवन के,
हर पहलु का उद्धार किया!
तुम कौन दिशा से आये पथिक ?
किस कारण इतना प्यार दिया ?
अनछुई धरती के आँचल पे,
नवनीत कलियों को वार दिया!
तुम कौन दिशा से आये पथिक ?
किस कारण इतना प्यार दिया ?
ये भ्रमित-भ्रमित सी अभिलाषाएं ,
सम्पूर्ण मेरा संसार किया !
तुम कौन दिशा से आये पथिक ?
किस कारण इतना प्यार दिया ?
तुम चन्द्र ,अनल, गोपाल बने ,
तन -मन अपना सब हार दिया !
तुम कौन दिशा से आये पथिक ?
किस कारण इतना प्यार दिया ?
द्वारा
----------अनु राज
Sunday, September 14, 2008
[10] जिंदगी जीना कला है ,और जीवन साधना !
तू कभी ना कापना !
Saturday, September 13, 2008
[9] भारती की भूमि पर हम जन्म लेकर हो गए पावन

भारती की भूमि पर हम जन्म लेकर हो गए पावन ।
सामरस में मिलकर अब तो हो गया काया का तारण
वीरों की भूमि यहाँ पर ,
ऋषियों का हैं देश ये ----ऋषियों का हैं देश ये ।
प्रेम की छाया यहाँ पर ,
सूर्य का यहाँ तेज पावन ।
भारती की भूमि पर हम जन्म लेकर , हो गए पावन ।
गंगा ,यमुना ,सरस्वती से ,
तप की भूमि बन गई ,तप की भूमि बन गई----
प्रेम की पावन धाराएँ ,
तन को करलों आज पावन ।
भारती की भूमि पर हम , जन्म लेकर हो गए पावन ।
हमको सुख से अब हटानी ,
दुख की सब परछाईयां ।
प्रेम और करुणा के रस से ,
मन को कर लो आज पावन।
भारती की भूमि पर हम जन्म लेकर हो गए पावन।
अपनी हस्ती को मिटाने ,
का ये वक्त हैं साथियों ---हां ये वक्त हैं साथियों
रक्त की बुँदे गिराकर ,
तन को कर लो आज पावन ।
भारती की भूमि पर हम जन्म लेकर हो गए पावन ....
द्बारा
---------अनु राज
[८]मात्रभाषा हिन्दी

हिन्दी दिवस के इस महान उपलक्ष्य पर सभी आदरणीय श्रोताओं और पाठको को मेरा सादर प्रणाम ।
प्रत्येक व्यक्ति अपने देश और उसकी मिटटी से जुड़ना चाहता हैं ,उसे नमन करना चाहता हैं। इसी
दिशा में बदाया गया ये मेरा एक छोटा सा कदम हैं ,आशा करती हूँ आप मेरे इस प्रथम प्रयास को ना की
सिर्फ़ सराहेंगे बल्कि मुझे आगे भी रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरणा प्रदान करते हुए उत्साहित करेंगे ।
ये हिंद हैं , हम हिंदू हैं ,हिन्दी भाषा का प्यार हैं ।
हिन्दी शब्दों के जाल से ही ये सारा संसार हैं ।
गंगा , यमुना और सरस्वती मे,
हिन्दी लहरें बनकर डोलती ।
हर धर्म,अर्थ और काम मोक्ष का ,
माया से बंधन खोलती ।
इस हिन्दी से हिमालय हैं ,
हिन्दी से हिंदुस्तान बना ।
हिन्दी के बल पर भारत ने ,
विश्व मे भी सम्मान जना ।
तुम हमसे हो , हम तुमसे हैं ,
ये भाषा हमे सिखाती हैं ।
हिन्दी ही तो मस्तिष्क के ,
हर हिस्से खोलती जाती हैं ।
हिन्दी की जननी संस्कृत ,
हिन्दी का मान बढाती हैं ।
हिन्दी तो हिंद के बच्चों को ,
भाषा का ज्ञान कराती हैं ।
हिन्दी जन-जन की बोली हैं ,
ये ऐसे स्वजनों की टोली हैं ।
क्या मद्रासी,क्या पंजाबी ,ये तो ,
हर जन की हमजोली हैं ।
हिन्दी मे ही धरती माता मे,
फसलों ने गीत सुनाये हैं ,
सदियों से जो दिल दूर थे ,
उन सबको आज मिलाएं हैं।
तुम भी बोलो , हम भी बोलें ,
हिन्दी से हर एक राज़ खोलें ।
हिंद मे हिन्दी की जय हों
ऐसा कहकर हर मन डोले ।
गर विन्ध्याचल से ये पूंछे ,
ये हिन्दी कितनी महान हैं ?
वो संच बोलेगा साथियों ,
हिन्दी , हिंद का स्वाभिमान हैं ।
[७]पुकारती वसुंधरा,पुकारती माँ भारती
[६]गज गामिनी वामा को सोंदर्य सुधा क्यो कहते हैं ?

इस गज गामिनी वामा को सोंदर्य सुधा क्यों कहते हैं?
पुरूष के चक्षु हरपल इसकी प्रतिमा पे टिके क्यों रहते हैं?
इस कांता की हर एक लचक ,
दामिनी बनकर कड़कती हैं ।
जब-जब ये दिखाए एक झलक ।
क्यों ह्रदय में ज्वाला भड़कती हैं ?
कानन भी अनुपम सोंदर्य का ,
बखान किया करता हैं ।
बनकर भृत्य ये शून्य भी ,
इसकी सेवा करता हैं।
इस अलंकृता को तो देखो ,
मदिरा का दूजा स्वरुप हैं।
इसे पाने की अभिलाषा हैं,
ऐसा प्रेममयी ये रूप हैं।
ये रतिपति की कल्पना ,
देवो को भी बहकाती हैं ।
ये ऐसी चंचल मरीचि हैं ,
संघर्ष यहाँ करवाती हैं ।
जब प्रेम मई मग्न ये होती हैं,
यूँ भाव-विभोर सी होती हैं।
अपने साजन के प्रेमवश ,
काँटों पर भी ये सोती हैं।
ये केकई और सीता दोनों के ,
अंतर्मन में समायी हैं ।
ये ब्रह्मा की वो रचना हैं ,
हर रूप मई जो मुस्काई हैं।
ये माँ भी हैं ,पत्नी भी हैं ,
बेटी का अनोखा रूप भी हैं।
ये तो ऐसा फूल हैं बगिया का ,
और इन्द्रधनुष का स्वरुप भी हैं ।
सम्मान इसे दे-दे ओ पुरूष ,
क्यों हरपाल मान घटाता हैं?
तेरे ही प्रेम की छायाँ ये ,
क्यों हरपल इसे रुलाता हैं?
[५] सर्व-धर्म समभाव

[३] ना पूछा उन्होंने !

ना पूछा उन्होंने ?
ना पूछा उन्होंने ?
आँखों की नमी गुनगुनायी हैं,होंठो पे क्यों सुर्खी छाई हैं ?
ना पूछा उन्होंने ?
जज्बातों की दी क्यों दुहाई हैं,हाथो की मेहँदी क्यों मुरझाई हैं ?
ना पूछा उन्होंने ?
काश उनको भी मोह्हबत होती ?
उनकी आँखे भी ना सोती?
मेरी आँहों की खोमिशी,
उनके सीने से लग कर रोती!
द्वारा ---------------अनु राज
Friday, September 12, 2008
[2]हम तेरे दीवाने हो गए
इस भरी दुनिया मे बेगाने हो गए!
बात सिर्फ होंठो से निकली ही थी,
की हर लफ्ज़ के अफ़साने हो गए!
द्वारा-----------अनु राज
[1]पत्थर से मोम सा पिघल गया
स्पर्श के एहसास से दिलो का छल निकल गया!
कांटो की छुभन और फूलो दोनों तुझमे समाये!
तेरे अनमोल वचनों से गंगा जल निकल गया!
तेरी एक मुस्कान दुनिया को जीना सिखाती हैं,
तू ही हैं वो जिसको प्रेम की भाषा आती हैं!
अम्बर और धरती बस तेरी ही परछाई हैं!
हस्ती तेरी बनाने वाले ने क्या खूब बनायीं हैं?
द्वारा---------अनु राज