Sunday, September 21, 2008

[१५] जो एक कली मुरझाई थी,छूने से उनके खिल गई !


उनके लबो से सजावटें ,शब्दों को मेरे मिल गयी!

जो एक कलि मुरझाई थी ,छूने से उनके खिल गयी!


उनकी अदाएं हर घडी , सागर से दिल में समां गयी!

हर साँस पर सांसे मेरी, उनकी आहों से मिल गयी !


नाज़ुक से मेरे हाथो को ,वो चूम के यू चल दिए !

मै रोक न पाई नदी को,और वो सागर से मिल गयी!


सीने की धडकनों कों, खामोशियाँ जो छू गयी !

मेरे मसीहा के दर पे ये निगाहे ही झुक गयी!


कुछ इस कदर नसों मे रवानी सी बह गयी !

उनकी प्रीत के जूनून मे "अनु" सब हंस के सह गयी !


द्वारा



---------------अनु राज

1 comment:

gotms said...

उनके लबो से सजावटें ,शब्दों को मेरे मिल गयी!


जो एक कलि मुरझाई थी ,छूने से उनके खिल गयी!

B'ful expression of feelings !! Keep Writing ;)

-Gautam Saraswat