Saturday, September 13, 2008

[७]पुकारती वसुंधरा,पुकारती माँ भारती

उठो जवान देश के प्रकृति हैं पुकारती,
पुकारती वसुंधरा ,पुकारती माँ भारती ।
कट गए हैं वृक्ष ,देश की ज़मीन दो रही,
पानी ना रहा ये भूमि बंजारों सी हो रही।
रूठा ऋतुराज इसे मिलकर यू मनाये हम,
आओ अब उतारे हम अपनी माहि की आरती।
पुकारती वसुंधरा ,पुकारती माँ भारती।
मारते हैं जीवो को दया सभी की मिट चुकी ,
बेंचते हैं खालो को हया सभी की मिट चुकी।
रूक रही पवन की प्राण वायु भी ना मिल रही,
मनुष्य की मनुष्यता स्वयं को ही हैं मारती।
पुकारती वसुंधरा ,पुकारती माँ भारती।
द्वारा
---------अनु राज

1 comment:

Anonymous said...

kaash ! yah pukar maan bhaarti ki santaane sun paati.....